Tuesday, January 24, 2012

ज्योतिष सीखिये -पाठ 1

ज्योतिष सीखने के लिये आपका स्वागत है.ज्योतिष का अर्थ है भूत वर्तमान और भविष्य की जानकारी प्राप्त करना.यानी पिछले समय मे क्या हुआ,अब क्या हो रहा है और आगे क्या होगा? इस बात को अनुमान से बताना गलत हो सकता है,अनुभव से बताना गलत हो सकता है,लेकिन ज्योतिष से बताना गलत नही हो सकता है। ज्योतिष सीखने के लिये जो मुख्य बाते आपके लिये है वह इस प्रकार से है:-
  • ज्योतिष देव भाषा है इसे सीखने के लिये अपने को साफ़ और स्वच्छ शरीर तथा मन को स्वस्थ रखना जरूरी है,रास्ते चलते,सोने के पहले,अथवा किसी अन्य काम मे व्यस्त रहकर कदापि नही सीखें,अन्यथा ज्योतिष नही सीखी जा सकती है.
  • ज्योतिष सीखने के लिये हमेशा समय को निश्चित करना है,एक समय को कभी भी निर्धारित किया जा सकता है.समय का विभाजन किये बिना पाठ को नही सीखा जा सकता है.
  • ज्योतिष सीखने के लिये क्रम से सीखना जरूरी होता है,एक पाठ को पहले उसके बाद दूसरे पाठ को सीखा जा सकता है,यह नही कि आज एक पाठ को पढ लिया और दूसरे दिन तीसरे पाठ को पढा बीच मे क्रम के टूटने से ज्योतिष नही सीखी जा सकती है.
  • ज्योतिष को सीखने के लिये सुबह से शाम तक की दिन चर्या को मर्यादा मे रखना होता है,अपने लिये कभी भी ज्योतिष का प्रयोग नही करना चाहिये,कारण खुद की ज्योतिष करना हर किसी के वश की बात नही है.
  • ज्योतिष को जितना हो सके लोक हित मे ही सीखना चाहिये.हंसी मजाक में या किसी की प्रतिस्पर्धा मे ज्योतिष को नही प्रयोग करना चाहिये.ज्योतिष बताने के लिये एक ध्यान अवश्य रखना चाहिये कि सामने वाला अगर कोई मजाक से या खुद के द्वारा अंजवाने के लिये ज्योतिष का प्रयोग कर रहा है तो ज्योतिष हमेशा झूठी हो जायेगी और पूंछने वाले तथा बताने वाले के लिये वही ग्रह जो मजाक कर रहे थे या गलत जानकारी देकर अंजवाने की कोशिश कर रहे थे दिक्कत देना शुरु कर देंगे.
  • ज्योतिष को बताने के लिये बिना कुंडली खोले पहले आने वाले व्यक्ति के पहिनावे उठने बैठने तथा शरीर की बनावट से अपने मन मे मानसिक कुंडली को बनाकर ही आगे के कार्य को करना चाहिये.
  • ज्योतिष का मुख्य ग्रह राहु है,राहु अगर बेलेंस करने की ताकत को नही दे रहा है तो कभी भी फ़लित ज्योतिष काम नही करेगी.
आशा है आप ऊपर की बातो को समझ गये होंगे,आइये आज का पाठ शुरु करते है.
जीवन को बारह भागों में विभाजित किया गया है.
पहला भाग शरीर होता है.
दूसरा भाग शरीर की पालना के लिये धन और कुटुम्ब होता है.
तीसरा भाग शरीर की रक्षा करने के लिये छोटे भाई बहिन कपडे आदि होते है.
चौथा भाग शरीर को सुरक्षित रखने के लिये घर मकान वाहन होता है.
पांचवा भाग शरीर को स्वस्थ रखने के लिये और शरीर के द्वारा शरीर को मर्यादित रखने के लिये शरीर से शरीर को आगे बढाने के लिये प्रयोग मे लाया जाता है.
छठा भाग शरीर की अन्दरूनी जानकारी के लिये होता है शरीर हित के लिये किये जाने वाले काम शरीर की बीमारी शरीर के अन्दर की प्रकृति को जानने का भाग होता है.
सातवा भाग शरीर को आजीवन संघर्ष करने के लिये प्रयोग मे लाया जाता है,इस भाग के द्वारा शरीर अपने द्वारा जो भी कार्य करता है वह जीवन के क्षेत्र को विस्तार मे लाने के लिये प्रयोग मे लाया जाता है.
आठवा भाग शरीर के द्वारा लिया जाने वाला जोखिम और रिस्क आदि के लिये जाना जाता है.
नवा भाग शरीर के लिये उसकी पीछे की सभ्यता उसके द्वारा जो भी किया जायेगा सहायता के लिये अन्जानी शक्तियों के द्वारा मिलने वाले बल के लिये गिना जाता है.
दसवा भाग शरीर के द्वारा की जाने वाली मेहनत और जीवन के क्षेत्र को विस्तार मे लाने के लिये गिना जाता है.
ग्यारहवा भाग शरीर के द्वारा की जाने वाली मेहनत से मिलने वाले फ़ल और शरीर के पहले ही किसी अन्य शरीर के जन्म यानी बडे भाई बहिन के लिये जाना जाता है.
बारहवां भाग शरीर को आराम देने के लिये शरीर से शरीर के लिये खर्च करने के लिये और शरीर को मानसिक रूप से देश विदेश ले जाने के लिये माना जाता है यह भाग शरीर की अन्तिम स्थिति का कारण भी है,जहां से शरीर का निस्तारण होकर फ़िर से नये शरीर का निर्माण होना शुरु होता है.
जीवन के बारह भागो को 360 डिग्री में बांट कर एक वृत को तैयार किया गया है,यही ज्योतिष के बारह भाव कहे जाते है,एक भाव की समयावधि और माप 30 डिग्री की होती है.
बारह भाव इस प्रकार से है:-
लगन यानी जन्म समय पर आसमानी स्थिति.
धन यानी जन्म समय से तीस डिग्री आगे.
हिम्मत या पराक्रम यानी जन्म समय से साठ डिग्री आगे.
माता मन या वाहन घर आदि यानी जन्म समय से नब्बे डिग्री आगे.
सन्तान परिवार बुद्धि यानी जन्म समय से एक सौ बीस डिग्री आगे.
रोग दुश्मनी कर्जा नौकरी यानी जन्म समय से एक सौ पचास डिग्री आगे.
जीवन साथी साझेदार और जीवन की लडाइयां यानी जन्म समय से एक सौ अस्सी डिग्री आगे.
मृत्यु जान जोखिम रिस्क जीवन की सबसे नीची स्थिति यानी जन्म समय से दो सौ दस डिग्री आगे.
भाग्य धर्म विदेश यानी जन्म समय से दो सौ चालीस डिग्री आगे.
कर्म जीवन को चलाने के लिये किये जाने वाले कर्म यानी जन्म समय से दो सौ सत्तर डिग्री आगे.
कर्म फ़ल लाभ बडे भाई बहिन मित्र आदि यानी जन्म समय से तीन सौ डिग्री आगे.
खर्च यात्रा आराम आदि यानी जन्म समय से तीन सौ तीस डिग्री आगे और तीन सौ साठ डिग्री के पहले.

कुंडली निर्माण करने के लिये जो उत्तर भारत मे वैदिक रीति अपनायी जाती है उसके अनुसार चित्र के अनुसार एक वर्ग को विभाजित किया जाता है,उस वर्ग मे चार वर्ग और आठ त्रिभुज बना दिये जाते है.सबसे ऊपर का वर्ग लगन यानी जन्म समय की आकाशीय स्थिति होती है फ़िर बायीं तरफ़ चलने के बाद धन और कुटुम्ब की स्थिति दूसरे भाव मे आती है उनकी दूरी जन्म समय से तीस तीस डिग्री की होती है.जन्म के बाद परिवार फ़िर तीसरे भाव से हिम्मत चौथे से माता मन मकान पंचम से शिक्षा संतान परिवार छठे से कर्जा दुश्मनी बीमारी सातवे से जीवन साथी और आठवे से मौत अपमान जान जोखिम नवे से धर्म भाग्य विदेश कालेज की शिक्षा दसवे से जीवन को जीने के लिये किये जाने वाले कार्य ग्यारहवे से कार्य के बाद मिलने वाले लाभ बारहवे से जो लाभ मिले है उनके खर्च होने तथा जीवन मे किये जाने वाले कार्यों से आराम पाने के लिये इस भाव का निर्माण किया जाता है.