Sunday, February 12, 2012

Daily Remedies

Stars are responsible for the making good or bad in life. The first Bhava is the image of body second related to money third related to expression fourth for livings and fifth for the children sixth for the diseases and daily jobs seventh for the life mate,8th for the death and money from hidden ways, ninth for the luck and religion tenth for the jobs those related to livings and 11th is the image of gains 12th for the making expanses of life gains.
 Daily Remedies
If any trouble related to body want to make name and fame start see your face in mirror when you leave sleeping area.
If you have money related trouble in life then start see the money place or lord of money as per your birth chart.
If you have troubles related to name and fame in life then start see face of your younger brother or sister or god or goddess related to third house's Rashi (sign).
If you have trouble related to your living house then start see the face of your mother, or god of related to fourth house.
If you have trouble related to fifth house related to children then see the face of first child of god related to fifth house.
If you have much trouble related to diseases or debt or enmity then start chant 31 time name of god or goddess related to sixth house.
If you have trouble related to seventh house of life mate then start see the face of life mate or god or goddess of  seventh house.
If you want quick gains through deep ways then start to see the face of your elder father of god or goddess of your 8th house.
If you have troubles related to luck and parental properties then see the face of father or god or goddess related to ninth house.
If you have troubles related to jobs career etc then start to see face of your maternal uncle or god or goddess related to tenth house.
If you have troubles related to gains of money through career or jobs then start to see the face of your elder brother of the god or goddess related to 11th house.
If you have troubles related to expanses hospitals fears related to jail etc then start to see the place of worship in living house or god or goddess of 12th house.
These are steps who's are good related to daily life and you find sure success in life.

Tuesday, January 24, 2012

ज्योतिष सीखिये -पाठ 1

ज्योतिष सीखने के लिये आपका स्वागत है.ज्योतिष का अर्थ है भूत वर्तमान और भविष्य की जानकारी प्राप्त करना.यानी पिछले समय मे क्या हुआ,अब क्या हो रहा है और आगे क्या होगा? इस बात को अनुमान से बताना गलत हो सकता है,अनुभव से बताना गलत हो सकता है,लेकिन ज्योतिष से बताना गलत नही हो सकता है। ज्योतिष सीखने के लिये जो मुख्य बाते आपके लिये है वह इस प्रकार से है:-
  • ज्योतिष देव भाषा है इसे सीखने के लिये अपने को साफ़ और स्वच्छ शरीर तथा मन को स्वस्थ रखना जरूरी है,रास्ते चलते,सोने के पहले,अथवा किसी अन्य काम मे व्यस्त रहकर कदापि नही सीखें,अन्यथा ज्योतिष नही सीखी जा सकती है.
  • ज्योतिष सीखने के लिये हमेशा समय को निश्चित करना है,एक समय को कभी भी निर्धारित किया जा सकता है.समय का विभाजन किये बिना पाठ को नही सीखा जा सकता है.
  • ज्योतिष सीखने के लिये क्रम से सीखना जरूरी होता है,एक पाठ को पहले उसके बाद दूसरे पाठ को सीखा जा सकता है,यह नही कि आज एक पाठ को पढ लिया और दूसरे दिन तीसरे पाठ को पढा बीच मे क्रम के टूटने से ज्योतिष नही सीखी जा सकती है.
  • ज्योतिष को सीखने के लिये सुबह से शाम तक की दिन चर्या को मर्यादा मे रखना होता है,अपने लिये कभी भी ज्योतिष का प्रयोग नही करना चाहिये,कारण खुद की ज्योतिष करना हर किसी के वश की बात नही है.
  • ज्योतिष को जितना हो सके लोक हित मे ही सीखना चाहिये.हंसी मजाक में या किसी की प्रतिस्पर्धा मे ज्योतिष को नही प्रयोग करना चाहिये.ज्योतिष बताने के लिये एक ध्यान अवश्य रखना चाहिये कि सामने वाला अगर कोई मजाक से या खुद के द्वारा अंजवाने के लिये ज्योतिष का प्रयोग कर रहा है तो ज्योतिष हमेशा झूठी हो जायेगी और पूंछने वाले तथा बताने वाले के लिये वही ग्रह जो मजाक कर रहे थे या गलत जानकारी देकर अंजवाने की कोशिश कर रहे थे दिक्कत देना शुरु कर देंगे.
  • ज्योतिष को बताने के लिये बिना कुंडली खोले पहले आने वाले व्यक्ति के पहिनावे उठने बैठने तथा शरीर की बनावट से अपने मन मे मानसिक कुंडली को बनाकर ही आगे के कार्य को करना चाहिये.
  • ज्योतिष का मुख्य ग्रह राहु है,राहु अगर बेलेंस करने की ताकत को नही दे रहा है तो कभी भी फ़लित ज्योतिष काम नही करेगी.
आशा है आप ऊपर की बातो को समझ गये होंगे,आइये आज का पाठ शुरु करते है.
जीवन को बारह भागों में विभाजित किया गया है.
पहला भाग शरीर होता है.
दूसरा भाग शरीर की पालना के लिये धन और कुटुम्ब होता है.
तीसरा भाग शरीर की रक्षा करने के लिये छोटे भाई बहिन कपडे आदि होते है.
चौथा भाग शरीर को सुरक्षित रखने के लिये घर मकान वाहन होता है.
पांचवा भाग शरीर को स्वस्थ रखने के लिये और शरीर के द्वारा शरीर को मर्यादित रखने के लिये शरीर से शरीर को आगे बढाने के लिये प्रयोग मे लाया जाता है.
छठा भाग शरीर की अन्दरूनी जानकारी के लिये होता है शरीर हित के लिये किये जाने वाले काम शरीर की बीमारी शरीर के अन्दर की प्रकृति को जानने का भाग होता है.
सातवा भाग शरीर को आजीवन संघर्ष करने के लिये प्रयोग मे लाया जाता है,इस भाग के द्वारा शरीर अपने द्वारा जो भी कार्य करता है वह जीवन के क्षेत्र को विस्तार मे लाने के लिये प्रयोग मे लाया जाता है.
आठवा भाग शरीर के द्वारा लिया जाने वाला जोखिम और रिस्क आदि के लिये जाना जाता है.
नवा भाग शरीर के लिये उसकी पीछे की सभ्यता उसके द्वारा जो भी किया जायेगा सहायता के लिये अन्जानी शक्तियों के द्वारा मिलने वाले बल के लिये गिना जाता है.
दसवा भाग शरीर के द्वारा की जाने वाली मेहनत और जीवन के क्षेत्र को विस्तार मे लाने के लिये गिना जाता है.
ग्यारहवा भाग शरीर के द्वारा की जाने वाली मेहनत से मिलने वाले फ़ल और शरीर के पहले ही किसी अन्य शरीर के जन्म यानी बडे भाई बहिन के लिये जाना जाता है.
बारहवां भाग शरीर को आराम देने के लिये शरीर से शरीर के लिये खर्च करने के लिये और शरीर को मानसिक रूप से देश विदेश ले जाने के लिये माना जाता है यह भाग शरीर की अन्तिम स्थिति का कारण भी है,जहां से शरीर का निस्तारण होकर फ़िर से नये शरीर का निर्माण होना शुरु होता है.
जीवन के बारह भागो को 360 डिग्री में बांट कर एक वृत को तैयार किया गया है,यही ज्योतिष के बारह भाव कहे जाते है,एक भाव की समयावधि और माप 30 डिग्री की होती है.
बारह भाव इस प्रकार से है:-
लगन यानी जन्म समय पर आसमानी स्थिति.
धन यानी जन्म समय से तीस डिग्री आगे.
हिम्मत या पराक्रम यानी जन्म समय से साठ डिग्री आगे.
माता मन या वाहन घर आदि यानी जन्म समय से नब्बे डिग्री आगे.
सन्तान परिवार बुद्धि यानी जन्म समय से एक सौ बीस डिग्री आगे.
रोग दुश्मनी कर्जा नौकरी यानी जन्म समय से एक सौ पचास डिग्री आगे.
जीवन साथी साझेदार और जीवन की लडाइयां यानी जन्म समय से एक सौ अस्सी डिग्री आगे.
मृत्यु जान जोखिम रिस्क जीवन की सबसे नीची स्थिति यानी जन्म समय से दो सौ दस डिग्री आगे.
भाग्य धर्म विदेश यानी जन्म समय से दो सौ चालीस डिग्री आगे.
कर्म जीवन को चलाने के लिये किये जाने वाले कर्म यानी जन्म समय से दो सौ सत्तर डिग्री आगे.
कर्म फ़ल लाभ बडे भाई बहिन मित्र आदि यानी जन्म समय से तीन सौ डिग्री आगे.
खर्च यात्रा आराम आदि यानी जन्म समय से तीन सौ तीस डिग्री आगे और तीन सौ साठ डिग्री के पहले.

कुंडली निर्माण करने के लिये जो उत्तर भारत मे वैदिक रीति अपनायी जाती है उसके अनुसार चित्र के अनुसार एक वर्ग को विभाजित किया जाता है,उस वर्ग मे चार वर्ग और आठ त्रिभुज बना दिये जाते है.सबसे ऊपर का वर्ग लगन यानी जन्म समय की आकाशीय स्थिति होती है फ़िर बायीं तरफ़ चलने के बाद धन और कुटुम्ब की स्थिति दूसरे भाव मे आती है उनकी दूरी जन्म समय से तीस तीस डिग्री की होती है.जन्म के बाद परिवार फ़िर तीसरे भाव से हिम्मत चौथे से माता मन मकान पंचम से शिक्षा संतान परिवार छठे से कर्जा दुश्मनी बीमारी सातवे से जीवन साथी और आठवे से मौत अपमान जान जोखिम नवे से धर्म भाग्य विदेश कालेज की शिक्षा दसवे से जीवन को जीने के लिये किये जाने वाले कार्य ग्यारहवे से कार्य के बाद मिलने वाले लाभ बारहवे से जो लाभ मिले है उनके खर्च होने तथा जीवन मे किये जाने वाले कार्यों से आराम पाने के लिये इस भाव का निर्माण किया जाता है.

Tuesday, October 18, 2011

Remedies

Stars Remedies.

Rahu Ketu Saturn always gives tension,negativity,and coldness in life.When Rahu in second house,gives tensions related to money and physical things,Rahu also gives habit to drink alcohols,medicines related to addicts.Rahu makes face to dirty like black spots on face,skin troubles on face,etc.When Ketu in the second house it gives long face and always gives feeling,there are nothing in life.When Saturn in second house,much tensions related to money,no money after hard work,when you want to say anything word power always in freeze and no values of knowledge,personal family also out of reach etc troubles makes by these three stars.Here some well known remedies those are very good after using and not much cost in the are area of remedies.

Remedies of Attraction

Attraction is must in life to show value of image of body in life,everything possible by the face if there are good face,smile,good talk,imagine power etc.Marigold is the name of flower,there are two colors of marigold,one like gold color and one like brown color,golden color require for the remedies of attraction.Marigold related to flower of Jupiter and Venus.If Rahu Saturn Ketu makes bad effects on face then take five flowers of marigold and grind them after dry.mix powder of turmeric one teas spoon with powder of marigold.when you goes to sleep,first make pest of both on face and sleep,wash face in morning,do this seven days continue and see results.

Attraction for Husband by Wife

Husband is the Mars in the birth chart of female kind by the astrology rules,wife is Venus and Relation is Jupiter.Saturn Rahu Ketu always busy to disconnect relationship form husband and wife.I find and good Mantra from a siddha,and I serve to troubled ladies those was very tensed from their husbands.Mantra is "Aum Asy Shri Suree mantra swarth Nirman Varn Rishi Iti Shipsa Swaha" daily chanting of this mantra after morning wake up 108 time daily,you find good results after 43 days.Do not break chain of chanting mantra.

Money Provider Remedies

Nature at its boasts numerous funds, which they have knowledge, he takes advantage.Vegetables and stones are the head in the area of nature.The lord of everything those related to physical is female,and male only manage like a worker for the female.Kind of Vegetables,many plants are good luck maker in this world.Like basil is a plant and if some one planted that in house in the are area of north-east,it means there are much money and progress in life,the Sun rise gives first ray of positive in that family.Water also money provider,if some one has running water in north-east area,it means there will be every member of that family in job and every member can earn money for the family.If some one has dirty place in this area that means there daily fighting for the money and each member in bad condition.

Stopping family fighting

By the confusions and family relations there are much fighting start with family members by time to time,it all by the star,and if anybody not thinking to stop fighting it means there are bread in relations,and much tensions to family members.Fighting between husband and wife is also by the effects of Mars and Venus,and it is good in the love time and bad in normal conditions.there are some remedies to stop fighting in family.By the fighting ghostly strength start to enter in home,start spray milk with honey in every corner of house daily when Sun set.Lite a candle of green color and make a prayer to your own Isht as you like most for the removing faults from house.If there are much using wine or any type addict in family then make try to out this type habits.

Buddhi Gyan and Samriddhi

Lord Ganesha is the head of above three kinds of strength.there are seven mantras for the making good life by the Buddhi gyan and samriddhi.

Aum Ganeshay Namha

this mantra can increase power of education,work in office,any you can find good position in your area of jobs.

Aum Gam Ganpataye namaha

In life and career this mantra can remove all type of tensions.supreme knowledge can help you in troubles time.

Example of Birth Chart Reading

Prediction of birth chart related to questions,anybody ask question related tho his/her life,and birth chart indicate about troubles of life when long troubles or short troubles,if there will be long troubles there require remedies.

Example Reading of birth chart.

Here is descriptions of birth chart.
Birth sign is Leo and lord of birth sign is Sun.
Sun having place in 12th house in Cancer sign.
Second house is Virgo sign and lord of this sign is Mercury having place with Sun in 12th house in Cancer sign.
Third house having Libra sign and lord of this sign is Venus Venus having place in 11th house this is Gemini sign also Venus having place with Moon. Moon is the lord of 12th house.
Fourth house having Scorpio sign the lord of this sign is Mars and Mars having place in 8th house this house having Pisces sign.
Fifth house having Sagittarius sign and the lord of this sign is Jupiter,Jupiter having place in 10th house and this house having Taurus sign.
Sixth house having Capricorn sign and the lord of this house is Saturn,Saturn having place in fifth house with Retrograde position.
Seventh house having Aquarius sign and the lord of this house in fifth house having retrograde position.
8th house having Pisces sign and the lord of this sign is Jupiter,Jupiter having place in 10th house.
9th house having Aries sign and the lord of this sign is Mars,Mars having place in 8th house.
10th house having Taurus sign and lord of this sign is Venus,Venus having place in 11th house with Moon.
11th house having Gemini sign and lord of this sign is Mercury,Mercury having place in 12th house with Sun.
12th house having Cancer sign and the lord of this is Moon,Moon having place in 11th house,with Venus.

Question of this birth chart.

This birth chart of a lady who started a business in Month of May 2011 and present time she is in trouble by the money problems.She want to know when she will come in good position by the money and will out from present tensions.

Question area of birth chart.

The area of business,4th 8th and 12th house.
Money Expanses for business through 3rd 7th and 11th house.
Gains area from business 5th 9th and 1st house.
Personal money area are 2nd 6th and 10th house.

Where and which type business created for gains?

Lord of 4th house in the area of foreign countries,lord of 8th house having place in 10th house,it is area of working place,and lord of 12th house in 11th house,it is the area of friend circle.
Lord of fourth house is Mars,and Mars having place in out of birth place,Mars having nature of technical mind.Mars also indicate about person who lost is birth place and birth house start to live in outer place of birth place,the money of business lend by the selling or making fraud with that person.It is a high class home decor related business also making sens about the the things those are lucky for the human kind. Business related to antic items.

Why business in confusion ?

Present time Rahu having place in first part of business, Rahu like a ghost and it create a place like grave yard by the strength of Tantrik ways.Positives of first part of business place out from that place,and there only laying rough material like ash.Expanses related to government,related to land and properties are continue.

How can Remove this type fault from business place?

First require white wash of this business place and require to lite a ghee lamp continue up to 13th Jan.2013,and Require Tarpan of this Rahu by the ritual method.Then autometic helps will start business and will make positives.

Ayushy Yoga

विषय प्रवेश

संसार का प्रत्येक मनुष्य चाहे वह किसी भी जाति धर्म सम[रदाय व मान्यताओं को मानने वाला क्यों न हो,उसके ह्रदय में प्रतिपल यह जानने की प्रबल इच्छा बनी रहती है कि उसकी आयु कितनी है ? उसका जीवन कब तक चलेगा ? संसार के किसी भी विज्ञान , किसी भी डाक्तर दार्शनिक व चिंतक के पास इस समस्या का समाधान नही है कि अभी जो बालक पैदा हुआ है वह कब तक जियेगा ? इसकी मृत्यु कब व किन परिस्थितियों में होगी ? इसकी आयु कितनी है ? इसकी Span Life कितनी है ? वास्तव में सांसारिक प्राणी को समझ में न आने वाली सबसे विकट व कठिन समस्या है,उसके मृत्यु का समय निश्चित करना।
यह बडे गौरव व आत्म-संतुष्टि का विषय है कि ज्योतिष शास्त्र में इस विषय पर व्यापक चिंतन किया गया है फ़िर भी जीवन भर अनेक ज्योतिष ग्रंथो को पढकर उनका अध्ययन करके भी आहुष्य का निश्चित निदान कह पाना अत्यंत कठिन है। गणित द्वारा आयुर्दाय निकालकर जन्म पत्रिकाओं में लिखना सामान्य ज्योतिष प्रंपरा है परंतु इसमें भी कुछ भी तथ्य नहीं। पूर्वाचार्यों ने आहुष्य निर्णय पर बहुत जोर दिया है,उन्होने कहा है :-
परम आयुप्रीक्षेत पश्चात्लक्षण समाचरेत।
आयुर्हीन: नरोयस्य,लक्षणै: किं प्रयोजनम॥
अर्थात विद्वान ज्योतिषी को चाहिये कि सबसे पहले सद्यजात जातक के आयु की परीक्षा करे उसके पश्चात ही किसी अन्य योग चरित्र व लक्षण पर विचार करे,क्योंकि आयु की लम्बाई जब आयु ही नही होगी तो अन्य लक्षणों का क्या प्रयोजन ।
संसार में गुणीजनों ने सात प्रकार के सुखों की चर्चा की है,उसमे सबसे पहला सुख स्वस्थ जीवन और दूसरा सुख धन को माना है।
पहला सुख निरोगी काया,दूजा सुख हो घर में माया
ऐसा लगता है है कि ज्योतिष शास्त्र ने भी इस सर्वमान्य लोकोक्ति को महत्व दिया है और जन्म कुंडली के पहले भाव से देह तथा दूसरे भाव से द्रव्य धन का चिंतन किया है,जन्म पत्रिका बनवाने आने वाले व्यक्ति को इस वर्ष में क्या घटना होने वाली है यह समझने और जानने की उत्कंठा बनी रहती है,जब आयुर्योग निश्चित करना आद्य कृत्य है तो गुणज्ञ ज्योतिषी को सबसे पहले उसी पर विचार करना चाहिये।
सद्य: जात बालक की मृत्यु और पैदा होते ही मृत्यु पर विचार करना एक विचित्र समस्या है। बालक की दशा महादशा अंतरदशाओं एवं मात्र आयुर्दाय से गणित करके इतना सब कुछ निकालपाना संभव नही है। यह काम अति परिश्रमजन्य व अनुभवगम्य है। काल गणना की इसी समस्या के समाधान जेतु अनेक दशा प्रकरणों की निष्पत्ति हुयी। विंशोत्तरी दशा अष्टोतरी दशा योगिनी दशा काल दशा मुद्दा दशा ह्रद्दा दशा पात्यंश दशा गोचर दशा और अनेक प्रकर की दशाओं पर निंतन मनन किया गया पर इनमें भी किसी भी एक वाक्यता नही है।
ज्योतिष शास्त्र की असली गंभीर समस्या यहीं से शुरु होती है।
तर्को प्रतिष्टित श्रुतयो विभिन्ना:
नेको ऋषि: यस्य मत: प्रमाणम,
अनेक महान ऋषि और दैवज्ञ महापुरुष उये जिन्होने बुद्धि ज्ञान तर्क के अनुपात से भिन्न भिन्न सिद्धांतो की संरचना की परंतु यह हमारा दुर्भाग्य रहा कि किसी भी एक दैवज्ञ महा्पुरुष के मत को अंतिम रूप से अनुसंधानित करके सार्वकालिक सत्य की कसौटी पर कसकर हमने निष्कर्ष नहीं निकाला।
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि ऋषियों द्वारा प्रणीति विव्य ज्ञान को ग्रहण करने की योग्यता पात्रता हममें नही है तो ऋषि बेचारे क्या करें।
श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य अलौकिक स्वरूप को प्रकट किया परंतु केवल दो तीन पुरुष ही उस दिव्य शक्ति अलौकिक शक्ति का दर्शन कर पाये। भौतिक नेत्र तो सभी के पास थे पर दिव्य दर्शन को देखने समझने की अंतर्ज्योति किसी के पास नही थी। बिल्कुल यही हाल ज्योतिष शास्त्र का है। भारतीय महाऋषियों ने घोर तपस्या के माध्यम से अपने आपको तिल तिल जलाकर ज्योतिष के इस दिव्य ज्ञान को जीवित रखा। आज ज्ञान विज्ञान का यह दुर्लभ खजाना सभी के लिये खुला है। अब ज्योतिष विद्या केवल ब्राह्मणों की विरासत नही रही। आज विश्व के हर देश हर जाति ह र्संप्रदाय व हर धर्म में आपको ज्योतिष का विषय चर्चा मे मिल जायेगा। अकेले भारतवर्ष में आपको हजारों लाखों की संख्या में ज्योतिषी मिल जायेंगे। पर कितने लोग है जो समर्पित भाव से ज्योतिष शास्त्र के अविरल शोध अध्ययन व अनुसंशान कार्य में जी जान से जुडे है,और इस दिव्य विज्ञान के आलोक से जगत को आलोकित कर पाये।
इन दिनो ज्योतिष में जजारों पुस्तकें छप रही है सकडों लेखक भविष्यवक्ता पैदा हो गये है,एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दसक से विश्व में लाखों करोडों की संख्या में ज्योतिष से संबन्धित सामग्री छपी है,जो कि अन्य किसी साहित सामग्री की तुलना में चार गुना अधिक है। आज किसी भी भाषा में प्रकाशित समाचार पत्र ज्योतिष फ़ल बिना अपूर्ण व अधूरा माना जाता है। निश्चय ही ज्योतिष प्रेमियों की संख्या करोंडों में बढी है। ऐसे में ज्योतिष के प्रति जागरूक अभ्येताओं व ज्योतिष संस्थाओं की जिम्मेदारी और अधिक बढ जाती है। यदि इन हजारों लाखों करोडों की ज्योतिष सामग्री के बीच हम केवल एक बात एक तथ्य एवं सूत्र की सच्चाई का पता लगाने में सफ़ल हो जायें तो आज ज्योतिष के दिव्य ज्ञान क अझंडा पुन: पूरे विश्व में फ़हर जाये। हम हमारी सारी ज्ञान सामग्री अंतर्चेतना के माध्यम से यदि यह पता लगाने में सफ़ल हो जाये कि अमुक व्यक्ति कितना और कब तक जियेगा,तो समस्त संसार की मानव जाति इस समस्या के निराकरण हेतु हमारी कृतज्ञ हो जायेगी,ऋणी हो जायेगी।

ज्योतिष शास्त्र में आयु के विभिन्न मानदंड

आयुष्य निर्णय पर ज्योतिष शास्त्र के सर्वमान्य सूत्रों के संकलन उदाहरण जैमिनी सूत्र की तत्वादर्शन नामक टीका में मिलता है। महर्षि मैत्रेय ने ऋषि पाराशर से जिज्ञासा वश प्रश्न किया कि हे मुन्हे आयुर्दाय के बहुत भेद शास्त्र में बतलाये गये है कृपाकर यह बतलायें कि आयु कितने प्रकार की होती है और उसे कैसे जाना जाता है,इस ज्योतिष के मूर्तिमंत स्वरूप ऋषि पराशन बोले -
बालारिष्ट योगारिष्ट्मल्पमध्यंच दीर्घकम।
दिव्यं चैवामितं चैवं सत्पाधायु: प्रकीर्तितम॥
हे विप्र आयुर्दाय का वस्तुत: ज्ञान होना तो देवों के लिये भी दुर्लभ है फ़िर भी बालारिष्ट योगारिष्ट अल्प मध्य दीर्घ दिव्य और अस्मित ये सात प्रकार की आयु संसार में प्रसिद्ध है।

बालारिष्ट

ज्योतिष शास्त्र में जन्म से आठ वर्ष की आयुपर्यंत होने वाली मृत्यु को बालारिष्ट कहा गया है। यथा लग्न से ६ ८ १२ में स्थान में चन्द्रमा यदि पाप ग्रहों से द्र्ष्ट हो तो जातक का शीघ्र मरण होता है। सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण का समय हो सूर्य चन्द्रमा राहु एक ही राशि में हों तथा लग्न पर शनि मंगल की द्रिष्टि हो तो जातक पन्द्रह दिन से अधिक जीवित नही रहता है,यदि दसवें स्थान में शनि चन्द्रमा छठे एवं सातवें स्थान में मंगल हो तो जातक माता सहित मर जाता है। उच्च का का या नीच का सूर्य सातवें स्थान में हो चन्द्रमा पापपीडित हो तो उस जातक को माता का दूध नही मिलता है वह बकरी के दूध से जीता है या कृत्रिम दूध पर ही जिन्दा रहत है। इसी प्रकार लग्न से छठे भाव में चन्द्रमा लग्न में शनि और सप्तम में मंगल हो तो सद्य जात बालक के पिता की मृत्यु हो जाती है।
इस प्रकार अनेक बालारिष्ट योगिं का वर्णन शास्त्र में मिलता है। गुणीजन बालारिष्ट से बचने का उपाय चांदी का चन्द्रमा मोती डालकर प्राण प्रतिष्ठा करके बालक के गले में पहनाते है क्योंकि चन्द्रमा सभी चराचर जीव की माता माना गया है। जिस प्रकार मां सभी अरिष्टों से अपनी संतान की रक्षा करती है उसी प्रकार से चन्द्रमा बालारिष्ट के कुयोगों से जातक की रक्षा करता है।
पित्रोर्दोषैर्मृता: केचित्केचिद बालग्रहैरपि।
अपरे रिष्ट योगाच्च त्रिविधा बालमृत्यव:॥
शास्त्रकारों ने यह स्पष्ट घोषणा की है कि जन्म से चार वर्षों के भीतर जो बालक मरता है उसकी मृत्यु माता के कुकर्मों व पापों के कारण होती है। चार से आठ वर्ष के भीतर की मौत पिता के कुकर्मों व पाप के कारण होती है,नौ से बारह वर्ष के भीतर की मृत्यु जातक के स्वंय के पूर्वजन्म कृत पाप के कारण होती है,और आठ वर्ष बाद जातक का स्वतंत्र भाग्योदय माना जाता है। इसलिये कई सज्जन बालक की सांगोपांग जन्म पत्रिका आठ वर्ष बाद ही बनाते है।

योगारिष्ट

आठ के बाद बीस वर्ष के पहले की मृत्यु को योगारिष्ट कहा जाता है चूंकि विशेष योग के कारण अरिष्ट होती है अत: इसे योगारिष्ट कहा जाता है।

अल्पायु योग

बीस से बत्तिस साल की आयु को अल्पायु कहा है। मोटे तौर पर वृष तुला मकर व कुंभ लगन वाले जातक यदि अन्य शुभ योग न हो तो अल्पायु होते है। यदि लग्नेश चर मेष कर्क तुला मकर राशि में हो तो अष्टमेश द्विस्वभाव मिथुन कन्या धनु मीन राशि में हो तो अल्पायु समझना चाहिये। लगनेश पापग्रह के साथ यदि ६ ८ १२ भाव में हो तो जातक अल्पायु होता है। यदि लगनेश व अष्टमेश दोनो नीच राशिगत अस्त निर्बल यो तो अल्पायु योग होता है। दूसरे और बारहवे भाव में पापग्रह हो केन्द्र में पापग्रह हो लगनेश निर्बल हो उन पर शुभ ग्रहों की द्रिष्टि नही हो तो जातक को अल्पायु समझना चाहिये। इसी प्रकार यदि जन्म लगनेश सूर्य का शत्रु हो जातक अल्पायु माना जाता है।
यदि लग्नेश तथा अष्टमेश दोनो ही स्थिर राशि में हो तो जातक अल्पायु होता है। इसी प्रकार शनि और चन्द्रमा दोनो स्थिर राशि में हो अथवा एक चर और दूसरा द्विस्वभाव राशि में हो तो जातक अल्पायु होता है। यदि जन्म लगन तथा होरा लगन दोनो ही स्थिर राशि की हों अथवा एक चर व दूसरे द्विस्वभाव राशि की हो तो जातक अल्पायु होता है। यदि चन्द्रमा लग्न द्रिष्काण दोनो ही स्थिर राशि हो तो जातक अल्पायु होता है। यदि चन्द्रमा लगन द्रिषकाण में एक की चर और दूसरे की द्विस्वभाव राशि तो भी जातक अल्पायु होता है। शुभ ग्रह तथा लग्नेश यदि आपोक्लिम ३ ६ ८ १२ में हो तो जातक अल्पायु होता है। जिस जातक की अल्पायु हो वह विपत तारा में मृत्यु को पाता है।

मध्यायु योग

बत्तिस वर्ष के बाद एवं ६४ वर्ष की आयु सीमा को मध्यायु के भीतर लिया गया है। यदि लग्नेश सूर्य का सम ग्रह बुध हो अर्थात मिथुन व कन्या लग्न वालों की प्राय: मध्यम आयु होती है। यदि लग्नेश तथा अष्टमेश में से एक चर मेष कर्क तुला मकर तथा दोसोअरा स्थिर यानी वृष सिंह वृश्चिक कुंभ राशि में हो तो जातक मध्यायु होता है। यदि लगनेश व अष्टमेश दोनो ही द्विस्वभाव राशि में हो तो जातक की मध्यम आयु होती है। यदि चन्द्रमा तथा द्रेषकाण में एक की चर राशि तथा दूसरे की स्थिर राशि हो तो जातक मध्यामायु होता है। यदि शुभ ग्रह पणफ़र यानी २ ५ ८ ११ में हो तो जातक की मध्यमायु होती है। मध्यायु प्रमाण वाले जातक की मृत्यु प्रत्यरि तारा में होती है।

दीर्घायु योग

६४ से १२० साल के मध्य को दीर्घायु कहा जाता है। यदि जन्म लगनेश सूर्य का मित्र होता है तो जातक की दीर्घायु मानी जाती है। लगनेश और अष्टमेश दोनो ही चर राशि में हो तो दीर्घायु योग माआ जाता है।यदि लगनेश और अष्टमेश दोनो में एक स्थिर और एक द्विस्वभाव राशि में हो तो भी दीर्घायु योग का होना माना जाता है। यदि शनि और चन्द्रमा दोनो ही चर राशि में हो अथवा एक चर राशि में और दूसरा द्विस्वभाव राशि में हो तो दीर्घायु होग होता है। यदि जन्म लगन तथा होरा लग्न दोनो ही चर राशि की हो अथवा एक स्थिर व दूसरी द्वस्वभाव राशि की हो तो जातक दीर्घायु होता है। यदि चन्द्रमा तथा द्रेषकाण दोनो की चर राशि हो तो जातक दीर्घायु होता है यदि शुभ ग्रह तथा लगनेश केंद्र में हो तो जातक दीर्घायु होता है। लगनेश केन्द्र में गुरु शुक्र से युत या द्र्ष्ट हो तो भी पूर्णायु कारक योग होता है,लगनेश अष्टमेश सहित तीन ग्रह उच्च स्थान में हो तथा आठवां भाव पापग्रह रहित हो तो जातक का पूर्णायु का योग होता है। लगनेश पूर्ण बली हो तथा कोई भी तीन ग्रह उच्च स्वग्रही तथा मित्र राशिस्थ होकर आठवें में हो तो जातक की पूर्णायु होती है।

दिव्यायु

सब शुभ ग्रह केन्द्र और त्रिकोण में हो और पाप ग्रह ३ ६ ११ में हो तथा अष्टम भाव में शुभ ग्रह की राशि हो तो दिव्य आयु का योग होता है। ऐसा जातक यज्ञ अनुष्ठान योग और कायाकल्प क्रिया से हजार वर्ष तक जी सकता है।

अमित आयु योग

यदि गुरु गोपुरांश यानी अपने चतुर्वर्ग में होकर केन्द्र में हो शुक्र पारावतांश यानी अपने षडवर्ग में एवं कर्क लगन हो तो ऐसा जातक मानव नही होकर देवता होता है,उसकी आयु की कोई सीमा नही होती है वह इच्छा मृत्यु का कवच पहिने होता है।

वार से आयु की गणना करना

मानसागरी व अन्य प्राचीन जातक ग्रंथो मे वारायु की गणना दी गयी है। उनके अनुसार रविवार का जन्म हो तो जातक ६० साल जियेगा परन्तु जन्म से पहला छठा और बाइसवां महिने में घात होगा,सोमवार का जन्म हो तो जातक ८४ साल जिन्दा रहेगा लेकिन ग्यारहवे सोलहवे और सत्ताइसवे साल में पीडा होगी मंगलवार को जन्म लेने वाला जातक चौहत्तर साल जियेगा,लेकिन जन्म से दूसरे व बाइसवें वर्ष में पीडा होगी,बुधवार को जन्म लेने वाला जातक चौसठ साल जियेगा,लेकिन आठवें महिने और साल में घात होगी,गुरुवार को जन्म लेने वाले जातक की उम्र चौरासी साल होती है लेकिन सात तेरह और सोलह साल में कष्ट होता है,शुक्रवार को जन्म लेकर जातक ६० साल जिन्दा रहता है,शनिवार का जन्म हो तो तेरहवे साल में कष्ट पाकर सौ साल के लिये उसकी उम्र मानी जाती है।

आयु निर्णय का एक महत्वपूर्ण सूत्र

महर्षि पाराशन ने प्रत्येक ग्रह को निश्चित आयु पिंड दिये है,सूर्य को १८ चन्द्रमा को २५ मंगल को १५ बुध को १२ गुरु को १५ शुक्र को २१ शनि को २० पिंड दिये गये है उन्होने राहु केतु को स्थान नही दिया है। जन्म कुंडली मे जो ग्रह उच्च व स्वग्रही हो तो उनके उपरोक्त वर्ष सीमा से गणना की जाती है। जो ग्रह नीच के होते है तो उन्हे आधी संख्या दी जाती है,सूर्य के पास जो भी ग्रह जाता है अस्त हो जाता है उस ग्रह की जो आयु होती है वह आधी रह जाती है,परन्तु शुक्र शनि की पिंडायु का ह्रास नही होता है,शत्रु राशि में ग्रह हो तो उसके तृतीयांश का ह्रास हो जाता है। इस प्रकार आयु ग्रहों को आयु संख्या देनी चाहिये। पिंडायु वारायु एवं अल्पायु आदि योगों के मिश्रण से आनुपातिक आयु वर्ष का निर्णय करके दशा क्रम को भी देखना चाहिये। मारकेश ग्रह की दशा अन्तर्दशा प्रत्यंतर दशा में जातक का निश्चित मरण होता है। उस समय यदि मारकेश ग्रह की दशा न हो तो मारकेश ग्रह के साथ जो पापी ग्रह उसकी दशा में जातक की मृत्यु होगी। ध्यान रहे अष्टमेश की दशा स्वत: उसकी ही अन्तर्द्शा मारक होती है। व्ययेश की दशा में धनेश मारक होता है,तथा धनेश की दशा में व्ययेश मारक होता है। इसी प्रकार छठे भाव के मालिक की दशा में अष्टम भाव के ग्रह की अन्तर्दशा मारक होती है। मारकेश के बारे अलग अलग लगनो के सर्वमान्य मानक इस प्रकार से है।

मारकेश विचार

जन्म लगन से आठवा स्थान आयु स्थान माना गया है। लघु पाराशरी से तीसरे स्थान (आठवें से आठवा स्थान) को भी आयु स्थान कहा गया है। आयु स्थान से बारहवें यानी सप्तम को भी मारक कहा गया है।शास्त्रों में दूसरे भाव के मालिक को पहला मारकेश और सप्तम भाव के मालिक को दूसरा मारकेश बताया है। आठवा भाव मृत्यु का सूचक है। आयु और मृत्यु एक दूसरे से सम्बन्धित होते है। आयु का पूरा होना ही मृत्यु है। मौत के कारण बनते है,रोग दुर्घटना या अन्य प्रकार मौत के कारण बनते है। इस प्रकार से आठवें भाव से मौत और मनुष्य के जीवन का विचार किया जाता है। रोग का साध्य या असाध्य होना आयु का एक कारण है। जब तक आयु है कोई रोग असाध्य नही होता है,किंतु आयु की समाप्ति के आसपास होने वाला साधारण रोग भी असाध्य बन जाता है। इसलिये रोगों के साध्य असाध्य होने का विचार भी इस भाव से होता है। बारहवे भाव को व्यय स्थान भी कहते है व्यय का अर्थ है खर्च करना,हानि होना आदि। कोई भी रोग शरीर की शक्ति अथवा जीवन शक्ति को कमजोर करने वाला होता है,इसलिये बारहवें भाव से रोगों का विचार किया जाता है। इस स्थान से कभी कभी मौत के कारणों का पता चल जाता है,वस्तुत: अचानक दुर्घटना होना मौत के द्वारा मोक्ष का कारण भी यहीं से निकाला जाता है। मारकेश का नाम लेते ही या मौत का ख्याल आते ही लोग घबडा जाते है। आचार्यों ने अलग अलग लग्नो के अलग अलग मारकेश बताये है। मेष लग्न के जातक के लिये शुक्र मारकेश होकर भी उसे मारता नही है,लेकिन शनि और शुक्र मिलकर उसके साथ अनिष्ट करते है। वृष लगन के लिये गुरु घातक है,मिथुन लगन वाले जातकों के लिये चन्द्रमा घातक है,लेकिन मारता नही है मंगल और गुरु अशुभ है,कर्क लगन वाले जातकों के लिये सूर्य मारकेश होकर भी मारकेश नही है,परन्तु शुक्र घातक है,सिंह लगन वालो के लिये शनि मारकेश होकर भी नही मारेगा,लेकिन बुध मारकेश का काम करेगा। कन्या लगन के लिये सूर्य मारक है,पर वह अकेला नही मारेगा मंगल आदि पाप ग्रह मारकेश के सहयोगी होंगे। तुला लगन का मारकेश मंगल है,पर अशुभ फ़ल गुरु और सूर्य ही देंगे। वृश्चिक लगन का गुरु मारकेश होकर भी नही मारेगा,जबकि बुध सहायक मारकेश होकर पूर्ण मारकेश का काम करेगा। धनु लग्न का मारक शनि है,पर अशुभ फ़ल शुक्र देगा। मकर लगन के लिये मंगल ग्रह घातक है,कुंभ लगन के लिये मारकेश गुरु है लेकिन घातक कार्य मंगल करेगा। मीन लगन के लिये मंगल मारक है शनि भी मारकेश का काम करेगा। ध्यान रहे छठे आठवें बारहवें भाव मे पडे राहु केतु भी मारक ग्रह का काम करते है।

मृत्यु के प्रकार

मौत के आठ प्रकार माने गये है। केवल शरीर से प्राण निकलना ही मौत की श्रेणी में नही आता है अन्य प्रकार के कारण भी मौत की श्रेणी में आते है। इन आठ प्रकार की मौत का विवरण इस प्रकार से है:-
व्यथा दुखं भयं लज्जा रोग शोकस्तथैव च।
मरणं चापमानं च मृत्युरष्टविध: स्मृत:॥

व्यथा

शरीर में लगातार कोई न कोई क्लेश बना रहना। किसी घर के सदस्य से अनबन हो जाना और उसके द्वारा अपमान सहते रहना। शरीर का ख्याल नही रखना और लगातार शरीर का कमजोर होते जाना। मन कही होना और कार्य कुछ करना बीच बीच में दुर्घटना हो जाना और शरीर मे कष्ट पैदा हो जाना। आंखो मे कमजोरी आजाना,कानो से सुनाई नही देना हाथ पैर में दिक्कत आजाना और दूसरों के भरोसे से जीवन का निकलना आदि बाते व्यथा की श्रेणी में आती है।

शत्रुओं से घिरा रहना

बिना किसी कारण के बिना किसी बात के लोगों के द्वारा शत्रुता को पालने लग जाना। किसी भी प्रकार की बात की एवज में शरीर को कष्ट पहुंचाने वाले उपक्रम करना। घर के बाहर निकलते ही लोगों की मारक द्रिष्टि चलने लगना। पिता पुत्र पत्नी माता अथवा किसी भी घर के सदस्य से धन पहिनावा मानसिक सोच सन्तान बीमारी जीवन साथी अपमान धर्म न्याय पैतृक सम्पत्ति कार्य आमदनी यात्रा आदि के कारणों से भी घर के सदस्य अपनी अपनी राजनीति करने लगते है और किसी न किसी प्रकार का मनमुटाव पैदा हो जाता है,जरूरी नही है कि दुश्मनी बाहर के लोगों से ही हो,अपने खास लोगों से रिस्तेदारों से भी हो सकती है।

भय

मारकेश का प्रभाव शरीर की सुन्दरता पर भी होता है धन की आवक पर भी होता है अपने को संसार में दिखाने के कारणों पर भी होता है,अपने रहन सहन और मानसिक सोच पर भी होता है सन्तान के आगे बढने पर भी होता है किये जाने वाले रोजाना के कार्यों पर भी होता है,अच्छे या बुरे जीवन साथी के प्रति भी होता है,कोई गुप्त कार्य और गुप्त धन के प्रति भी होता है धर्म और न्याय के प्रति भी होता है जो भी कार्य लगातार लाभ के लिये किये जाते है उनके प्रति भी मारकेश का प्रभाव होता है जो धन कमाकर खर्च किया जाता है उनके प्रति भी मारकेश का प्रभाव होता है और इन कारकों के प्रति भय रहना भी मारकेश की श्रेणी में आता है।

लज्जित होना

शरीर में कोई व्यथा है और अपने से छोटे बडे किसी से भी शरीर की पूर्ति के लिये या शरीर को आगे पीछे करने के लिये सहायता मांगी जाती है और जब सहायता के बदले में खोटे वचन सुनने को मिलते है,अपमान भरी बाते सुनने को मिलती है दुत्कारा जाता है,किसी भी वस्तु की चाहत के लिये खरीदने की लालसा है और धन के लिये अपमानित होना पडता है,लिखने पढने या सन्देश देने के लिये किसी सहारे की जरूरत पडती है या कपडों के पहिनने के लिये लालसा होती है उस लालसा के प्रति शक्ति नही होती है अथवा किसी ऐसे देश भाषा या जलवायु में पहुंचा जाता है जहां की भाषा और रीति रिवाज समझ में नही आने से ज्ञानी होने के बाद भी भाषा का अपमान होता है तो लज्जित होना पडता है,यात्रा के साधन है फ़िर भी मारकेश के प्रभाव से यात्रा वाले साधन बेकार हो गये है किसी से सहायता मांगने पर उपेक्षा मिलती है तो समझना चाहिये कि चौथे भाव के मालिक के साथ मारकेश का प्रभाव है,सन्तान के प्रति या सन्तान के द्वारा किसी बात पर उपेक्षा की जाती है तो भी समझना चाहिये कि पंचमेश या पंचम भाव के साथ मारकेश का प्रभाव है।

शोक

पैदा होने के बाद पालने पोषने वाले चल बसे,विवाह के बाद पत्नी या सन्तान चल बसी भाई बहिन के साथ भी यही हादसा होने लगा माता का विधवा पन बहिन का विधवा होकर गलत रास्ते पर चले जाना हितू नातेदार रिस्तेदार जहां भी नजर जाती है कोई न कोई मौत जैसा समाचार मिलता है तो भी मारकेश का प्रभाव माना जाता है।

अपंगता

शरीर के किसी अवयव का नही होना या किसी उम्र की श्रेणी में किसी अवयव का दूर हो जाना और उस अवयव के लिये कोई न कोई सहायता के लिये तरसना अथवा लोगों के द्वारा उपेक्षा सहना आदि अपंगता के लिये मारकेश को जाना जाता है।

अपमानित होना

कहा जाता है कि गुरु को अगर शिष्य तू कह दे तो उसका अपमान हो जाता है और उस गुरु के लिये वह शब्द मौत के समान लगता है। उसी प्रकार से पुत्र अगर पिता को तू कह देता है तो भी पिता का मरण हो जाता है। माता अगर सन्तान की पालना के लिये गलत रास्ते को अपना लेती है तो भी अपमान से मरने वाली बात मानी जाती है,खूब शिक्षा के होने के बाद भी अगर शिक्षा के उपयोग का कारण नही बनता है तो भी अपमानित होना पडता है आदि बाते भी मारकेश की श्रेणी में आती है।

शरीर से प्राण निकलना

यह भौतिक मौत कहलाती है जब शरीर की चेतना समाप्त हो जाती है और निर्जीव शरीर मृत शरीर हो जाता है। अक्सर इसे ही मौत की श्रेणी में माना जाता है।
यदा मानं लभते माननार्हम,तदा स वै जीवति जीव: लोके।
यदावमानं लभते महांतं,तदा जीवन्मृत इत्युच्यते स:॥
इस जीव जगत में माननीय पुरुष जब तक सम्मान पाता है तभी तक वह वास्तव में जीवित है,जब वह महान अपमान प्राप्त करने लगता है,तब वह जीते जी मरा हुआ कहलाता है।

शरीर सौख्य योग

लगनाधिपति और गुरु या शुक्र का केन्द्र में स्थापित होना जातक को दीर्घ जीवी और राजनीति में सफ़ल होने के लिये अपनी युति देता है,ऐसे जातक को जीवन भर स्वस्थ शरीर का सुख बना रहता है।
जन्म राशि का लग्न शुभ ग्रहो से युक्त अथवा देखना शरीर को निरोगी बनाने मे और शरीर को स्वस्थ रखने के लिये माना जाता है।
लगन का स्वामी बलवान होकर शुभ ग्रहों से युक्त हो तो शरीर स्वस्थ होता है।
लगन मे जल राशि हो तो शरीर मोटा होता है तथा लगनेश जलग्रह बलवान हो तो शरीर स्वस्थ होता है।
लगन का स्वामी चर राशि मे शुभ ग्रह से देखा जा रहा हो तो शरीर स्वस्थ होता है,कीर्तिमान भी होता है और संसार में आदर पाने वाला होता है।
चन्द्र राशि और लगन का स्वामी एक ही स्थान पर हो तो शरीर मोटा होता है।
लगन का स्वामी जल राशि मे हो शुभ ग्रह चन्द्र बुध गुरु शुक्र से युक्त होवे और जलचर ग्रह से देखने वाला हो तो शरीर ताजा और मोटा होता है।
शुभ ग्रह की राशि ४ ३ ६ ९ १२ २ ७ हो और लगन नवांश का स्वामी जन्म राशि का होवे तो शरीर स्वस्थ होता है।
शुभ राशि का लग्न हो और पापग्रह नही देखता हो तो शरीर स्वस्थ होता है।
जन्म लगन मे गुरु हो या लगन को गुरु देखता हो तो शरीर स्वस्थ होता है।
लगन स्वामी शुभ ग्रह के साथ राशि मे बलवान हो तो शरीर स्वस्थ होता है।
लगन का स्वामी जल राशि मे बलवान शुभ ग्रह के साथ हो तो शरीर पुष्ट होता है।
यदि लग्नाधिपति चर राशि मे हो और उस पर शुभ ग्रह की द्रिष्टि हो तो शरीर बलवान होता है।

मोटापे का योग

लग्नाधिपति और जिस ग्रह के नवांश मे लग्नाधिपति हो और जलीय राशियों कर्क मीन वृश्चिक का योगदान हो तो शरीर मोटा होता है।
लगन भाव मे गुरु का होना या लग्न भाव में जलीय राशि का प्रभावी होना शरीर को मोटा बनाने के लिये काफ़ी है।
लगन मे शुभ ग्रह हो और शुभ ग्रहो की द्रिष्टि हो तो भी शरीर मोटा होता है।
लगन मे शुभ राशि हो और उस पर पाप ग्रह की द्रिष्टि नही हो तो भी शरीर मोटा होता है।
लगन मे गुरु हो या लगन को गुरु देखता हो तो शरीर मोटा होता है।

सुन्दर चेहरे वाला योग

यदि दूसरे भाव का मालिक केन्द्र मे हो और शुभ ग्रहो से देखा जाता हो तो चेहरा सुन्दर होता है।
दूसरे भाव का अधिपति केन्द्र मे हो वह अपनी उच्च राशि मे हो स्वराशि मे हो या मित्र राशि मे हो तो भी चेहरा सुन्दर होता है।

बडा और भारी शरीर

बुध से सप्तम मे मंगल होने पर भारी देह वाला योग बनता है।
लगन का स्वामी सिंह कन्या तुला या वृश्चिक मे हो तो भारी शरीर होता है।

ठिगना योग

सूर्य और शुक्र सिंह राशि मे और दसम स्थान मे मकर राशि का चन्द्रमा हो तो मनुष्य छोटे कद का होता है।
लगन और व्यवसाय स्थान का स्वामी चन्द्रमा शनि से देखा जाता हो शुभ ग्रह नही देख रहे हो तो मनुष्य छोटे कद का होता है।
पृष्ठोदय राशि १ २ ४ ९ १० का चन्द्रमा चौथे स्थान में हो तथा शनि से द्रष्ट हो लगन स्वामी मेष राशि में हो तो मनुष्य छोटे कद का होता है।
लगन या बारहवे स्थान में सूर्य और चन्द्रमा हो शनि चौथे प्रभाव से देख रहा हो कोई शुभ ग्रह नही देख रहा हो जन्म लगन का स्वामी मेष राशि का हो तो व्यक्ति छोटे कद का होता है।
मकर राशि का अस्त चन्द्रमा का लगन हो और शनि चन्द्रमा सूर्य की नजर हो तो भी मनुष्य छोटे कद का होता है।
लगन मे शनि बुध उच्च का हो अथवा चौथे स्थान मे शनि बुध हो तो मानव छोटे कद का होता है।
मेश मीन कर्क मकर और वृश्चिक इस राशि मे शनि और चन्द्रमा पाप ग्रह से युत्क हो या नवम स्थान में हो तो मनुष्य छोटे कद का होता है।
स्वराशि का मंगल हो,बुध तीसरे या चौथे स्थान और शनि लगन में हो तो आदमी छोटे कद का होता है।

कुबडा योग

कर्क राशि का चन्द्रमा लगन मे और शनि मंगल देखते हों तो मनुष्य छोटे कद का कुबडा होता है।
लगन और बारहवे स्थान का स्वामी तीसरे स्थान में पापग्रह से देखा जाता हो चौथे स्थान में शनि हो और लगन का स्वामी तथा मंगल की डिग्री कम या बहुत अधिक हो तो भी मनुष्य ठिगना होता है।
छठे सातवे आठवे स्थान के स्वामी कमजोर हो छठे स्थान पर शुभ ग्रह और आठवे स्थान में पापग्रह हो तो मनुष्य छोटे कद का होता है।
छठे स्थान में बुध गुरु शुक्र हो और चन्द्रमा के पीछे सब ग्रह हों अथवा सातवे आठवें स्थान में शनि मंगल नीच राशि मे हो जातक कुबडा होता है।
मेष या वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल चौथे स्थान में या नवांश में कमजोर हो तो व्यक्ति कुबडा होता है।

पराक्रमी योग

मंगल बलवान हो लगन या दसवें भाव में हो रात्रि का जन्म हो तो व्यक्ति पराक्रमी होता है।
लगन में मंगल हो तो व्यक्ति क्रोधी भी होता है।
सातवें स्थान में बलवान मंगल स्थापित हो तो जातक जरा सी बात पर गुस्सा करने वाला होता है।
दिन का जन्म हो बलवान मंगल लगन में या दसवे भाव मे हो तो भी जातक क्रोधी होता है।
जन्म लगन का स्वामी निर्बल हो त्रिकोण में हो तो व्यक्ति क्रोधी भी होता है और जोखिम लेने वाला भी होता है।
लगन या सप्तम से कमजोर मंगल को शनि देखता हो तो व्यक्ति क्रोधी भी होता है और कमजोर भी होता है चालाक भी होता है।
लगन का स्वामी बारहवे या आठवें स्थान में हो तो भी जातक क्रोधी होता है।
धन स्थान का स्वामी गुलिक के साथ हो तो भी जातक के अन्दर क्रोध होता है।
लगन का स्वामी बुध से छठे स्थान में हो तो जातक क्रोधी भी होता है और बात बात में अपने का ही बुरा करने वाला भी होता है।
लगन के नवे भाव में राहु शनि इकट्ठे हो तो भी जातक अपने को शिक्षा देने वाले भला करने वाले व्यक्ति के साथ भी अपघात कर सकता है।
तीसरे स्थान में मंगल हो उसको चन्द्रमा और बुध देख रहे हो तो भी जातक अपने साथ भला करने वाले के साथ बुरा सोचने वाला होता है।
नवे स्थान में गुरु और सूर्य हो तो भी जातक अपने अहम के कारण विश्वास करने वाला नही होता है।
तीसरे स्थान में केतु के होन पर जातक को कलह ही अच्छी लगती है।

गल्ती को क्षमा करने वाला योग

चौथे भाव का स्वामी लगन में अथवा लग्न्का स्वामी चौथे स्थान में हो तो व्यक्ति क्षमावान होता है.
चौथा भाव बलावान हो तो व्यक्ति क्षमावान होता है।
शुभ ग्रह चौथे स्थान में स्थिति हो तो व्यक्ति क्षमावान होता है।
कर्क वृश्चिक मीन राशि मे गया हुआ सूर्य अगर मंगल को देखता हो तो व्यक्ति क्षमावान होता है।
कर्क वृश्चिक और मीन यह नि:शब्द राशिया है इन राशियों में सूर्य मंगल को देखता हो तो जातक क्षमावान होता है।
शनि मंगल सूर्य ऊपर के राशि में स्थिति होकर चन्द्रमा को देखता हो तो व्यक्ति क्षमावान होता है।
लगन पंचम दसम एकादश स्थान में पुत्र सहम हो और सूर्य चन्द्रमा को देखता हो तो व्यक्ति क्षमावान होता है।”

हँसमुख योग

लगन में बुध हो और सातवें स्थान में गुरु हो तो व्यक्ति हंसमुख होता है।
बुध की राशि के ३ ६ का नवांश हो तो व्यक्ति हंसमुख होता है।
बुध मंगल का योग मकर राशि अथवा कुंभ राशि में हो व्यक्ति मजाक करने वाला होता है और मजाक के अन्दर ही सब कुछ लूटने वाला होता है।
मीन राशि में चन्द्रमा सूर्य के साथ हो तो व्यक्ति हंसमुख होता है और अपने स्वभाव से ही बडे बडे काम करवा लेता है।

चिरंजीवी योग

अश्वत्थामा राजाबलि महर्षि वेदव्यास भगवान राम के सेवक वीर हनुमान और लंका के राजा विभीषण कृपाचार्य और भगवान परशुराम यह सात महापुरुष चिरंजीवी है।
सिंह लगन का गुरु शुक्र कर्क चन्द्रमा दूसरे स्थान में कन्या राशि का हो और पापग्रह तीसरे छठे और ग्यारहवें भाव में हो चिरंजीवी योग होता है।
लगन में शनि हो सूर्य और मंगल बारहवें भाव हो बचे हुये सभी ग्रह आठवें स्थान में हो तो व्यक्ति चिरंजीवी होता है।
मेष लगन में कर्क का सूर्य चौथे स्थान में,शनि मीन राशि का बारहवें स्थान में मंगल सातवें और पूर्ण बली चन्द्रमा यदि बारहवें स्थान में हो तो व्यक्ति चिरंजीवी होता है।
वृष लगन में चन्द्रमा बुध शुक्र एवं गुरु के साथ लगन में हो और बचे हुये सभी ग्रह द्वितीय भाव में हो तो जातक इन्द्र के समान चिरंजीवी होता है।
यदि स्वग्रही गुरु लगन मे या दसवें हो शुक्र मिथुन का केंद्न में हो और ऐसा व्यक्ति लम्बी आयु वाला चिरंजीवी होता है।
यदि सभी ग्रह एक ही राशि मे बैठ कर केन्द्र या त्रिकोण में होते है तो बालक पैदा होते ही मर जाता है लेकिन मंत्र या औषिधि से बच भी जाता है तो वह चिरंजीवी हो जाता है।
यदि पंचम और नवंम में कोई पापग्रह नही हो तथा केन्द्र में कोई भी सौम्य ग्रह नही हो तो तथा अष्टम स्थान में भी कोई पापग्रह नही हो तो जातक चिरंजीवी होता है।
यदि वृष लगन में शुक्र और गुरु केन्द्र मे हो और अन्य सारे ग्रह तीसरे छठे दसवें और ग्यारहवें भाव मे हो तो ऐसा जातक चिरंजीवी होता है।
कर्क लगन में चन्द्रमा वृष राशि में,शनि तुला राशि में गुरु मकर राशि तो जातक चिरंजीवी होता है।
कर्क लगन में कर्क का नवमांश हो गुरु केन्द्र में मंगल मकर में शुक्र सिंह नवमांश में हो तो जातक चिरंजीवी होता है।
कन्या लगन मे कन्या का नवमांश बुध सातवें गुरु केन्द्र में शनि शुरु के अंश में हो तो जातक चिरंजीवी होता है।
शुक्र बारहवां मंगल केन्द्र में गुरु सिंह के नवमांश में होकर केन्द्र में हो तो जातक चिरंजीवी होता है।
बुध उत्तम अंश में होकर केन्द्र में हो शुक्र आखिरी अंशों में हो गुरु का राशि परिवर्तन हो तो जातक चिरंजीवी होता है।
कर्क लगन हो धनु का नवमांश हो तथा गुरु लगनस्थ हो नवमांश में तीन या चार ग्रह उच्च के हों तो जातक चिरंजीवी होता है।

Tarot School

1.The Magician

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Consciousness of the power in our life, the first concrete steps in a matter, will strength, will directed to a specific aim, strength for the guidance of the vigor in wanted direction. Knowing what one wants, strength of the influence, initiative, talent. Many-sidelines, readiness to take a risk upon oneself.This card always describes about a tricky person.One who asking question intimate about the nature of that person like a magician.

2.The High Priestess

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Feeling for the darkness, intuitive knowledge, feeling for hidden potentials in us, patience, sense and indulgence. Influence of a clever woman with a talent for intuition.searching out deep thinking.tied up in difficulties.having negative thinking,shows out of selfishness,having habit living alone in dark,see always towards the sky.after asking many time speak rarely.

3.The Empress

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Passion, emotional and pleasure-full attitude towards the life, sexuality, Motherliness, animated development and growth. Fertility, abundance, domestic stability, joy of the senses.always try to become a rich person,not have tension about family.careless about himself.sleepless in nights.

4.The Emperor

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Power of the society, authority, putting through of the laws, meeting with the law, stability and arrangement, supervisor, father. Self-control, conquest, ambition,ruling to others,ego minded.

5.The Hierophant

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Conformity with the behavioral rules, inclination for the obedience, insight, confidence and certainty. Good advice, declaration, lesson.

6.The Lovers

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Love, a valuable relationship, emotional relief, free decision, love and faith. A time of the choice. Trust in inspiration, not in intelligence.

7.The Chariot

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Strong will, to put a situation successfully under control, success, confidence and ventursomeness. Triumph through personal effort, triumph upon obstacle in the life.

8. Strength

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To encounter problems with hope and vigor, controlled passion, hold emotions under control, strength, vitality, vigor and force. Occasion, put plans into the action. Victory of the will over the low drives. Reconciliation with an enemy.

9.The Hermit

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Withdrawal from external occupations, to be on the way of knowledge, work on own evolution, to be quiet and withdrawn, check oneself. Necessity to approach the things slowly in order to search the correct way.

10.Wheel of Fortune

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Modification of the life circumstances, power of the fate, meaning of Karma, leave the question to the fate. Events of great importance, one has no personal influence on them.

11.Justic

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We get, that what we have earned, honesty, just action, just decisions, sportsmanship, objectivity, strive for the balance. Judgment, arbitrage award. Defense of truth and integrity.

12.The Hanged Man

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Independence, to be loyal to oneself, deep connection with the life. Adaptability, flexibility of the spirit. Crisis and stagnation.

13.Death

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Time for the modifications, to give up old habits and rigid attitudes. Finishing a stage in order to be able to begin a new one. A finished matter. Destruction that means luck in the misfortune because it makes the way free for something better.

14.Temperance

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Balance in all things, decision in favor of the middle way, correct action, to be able to combine different elements harmoniously, composure and inner balance. Success through careful control of the labile factors.

15.The Devil

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Narrow materialistic viewpoint, to be caught in sorrow and depression, inability to act correctly. Excessive obsession, trample on own moral principles, temptation, dependence and weakness. Necessity to sublimate the base self and to convert his strength into positive vigor.

16.The Tower

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Time for the vehement riot, difficult experiences, flash-like inspiration, shockwaves and revolution. Suffering which is caused by fateful strengths.

17.The Star

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Hope, cure, sense for the entirety, confidence, hope and luck. Insight into future possibilities, horizon enlargement.

18.The Moon

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Strange feelings, dreams, fears, fantasies, abandonment of external occupations, insecurity, anxiousness, nightmares. Only intuition can bring us forward.

19.The Sun

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Luck, joy, sense for the beauty of the life, vigor, optimism, heat,
liveliness, confirmation. Success in spite of all obstacles and adversities.

20.Judgement

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Inner impulse to carry out an important modification, recognition that something important has changed, following ones inner voice, resuscitation, liberation, redemption.

21.The World

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Success, reach a destination, satisfaction, climax, a happy completion. Successful end of a matter. The end of one life stage.

22.The Fool

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Open possibilities, infinite life vigor, courage, optimism, self-confidence, the beginning of a project, behaving oneself openly, animatedly and spontaneously. Unexpected influence which exercises great force upon all events.the begining situation.Your present situation is characterized through frankness, liveliness.

23.Ace of Wands

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Strength, vigor, joy of the life, good beginning, venturesome, enterprise and chance for the self-development. Creativity, fertility, originality, virility. Vigor of the element fire.

24.Two of Wands

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Boredom, satiety, to exclude oneself through success, indifference, hesitation, and lack of commitment. But also: To be able to implement ideas through strength of will, wisdom through experience. Creative potential growth in an enterprise or sexual relationship. Meeting or get-together that may or may not lead to something more important. Creative will in its most exalted form. The adventurer in us moves because we could have more than we have, or be more than we are. And out of restlessness and unformed power one idea leads to another and often the first one is not the final one.

25.Three of Wands

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Open up new interests and fields on the firm basis, stable foundation and view on long-term perspectives. Dreams, to be able to realize ingenious ideas. Optimism and satisfaction out of actual accomplishment, the establishment of primeval energy has strength and virtue. Here we have cultural meetings, outgoing with inner visions getting the appreciation hoped for in achievement. This fertile and flexible growth from solid groundwork is a cause for celebration.

26.Four of Wands

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Quit old life structure with courage and optimism; joy, harmony and peace. Achievements on the spiritual field or in the art. This domestic fire is a constant and active energy. One finds security and confidence in creative abilities, friendship and strong ties. So we have open opportunity or closed security.

27.Five of Wands

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Test of strength, contest, fight playfully, challenge, competition.
Examinations that must be passed, unavoidable conflicts.

28.Six of Wands

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Victory, success, recognition. The fulfillment of great hopes and wishes.

29.Seven of Wands

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To feel challenged for fight, quarrel. A time that requires effort and persistence.

30.Eight of Wands

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to realize the plans, bring projects and situations to a satisfactory end. Favorable influences and unexpected impulses, fever, stress. Hopeful alternation, acceleration in all matters.

31.Nine of Wands

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Fight out of habit, fight against invented resistance, to hurt oneself through problems and conflicts, hardened and defiant attitude. But also: great strength, bravery and stability.

32.Ten of Wands

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To overload oneself, to take over too much responsibility. Suppression, victory of violence. This card indicates all dualities and opposites. And the state of oppression, new obstacles, difficult engagements and exhaustion can no longer function; imagination must have fresh stimulation to awaken again with a new idea, a new goal and a new gamble.

33.Page of Wands

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Beginning of enterprises, receive a message or information, a chance, an impulse that carries away. A human being capable of enthusiasm who vigorously supports his friends or superiors.

34.Knight of Wands

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Enthusiasm, action for the sake of action, adventure. To commit oneself to all sides, to fall impatiently and full of passion into new experiences. A watchful, active man whose reactions are sometimes unpredictable and confuse.

35.Queen of Wands

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Accepting aims in life with heat and passion. Receptivity on the field of feelings. To act temperament-full, vigorous, courageously. A friendly, understanding, generous, independent woman who supports her fellow men with pleasure.

36.King of Wands

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To use controlled vigor in reasonable projects, to be able to dominate other people. Success and social responsibility. Temperament-full, vigorous, courageously act. A strong, courageous, tradition bound man who tends to fast action and has good mediating capabilities.

37.Ace of Swords

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Truth, real knowledge, intellect in connection with the intuition, making of an important decision or clarifying a difficult problem. Progress and success in spite of the obstacles. The strength of the air element.

38.Two of Swords

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To shut the eyes in order not to see something, to close oneself from other people, blocked feelings, doubts and indecision. But also: hold opposite strengths in the balance, peace and justice through the balance. An idea communicated to another, awaiting response or proposition. A new contact with possibilities, with excitement, interest and uncertainty - a desired movement strength gained from change. It can also be a conflict of opposing principles, a created standstill, a state of tension which demands a choice of some kind. The unpleasant reality must be faced, the conformity, the fight in suspense, the mistrust needs balance and inner peace.

39.Three of Swords

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Grief, sorrow, disappointment, necessary quarrel, conflict. It is the conflict of the two, consequences of human choice, resentments, pain from separation or heartbreak. There is discord, struggle, doubt and sorrow and out of mind-chaos it is heavy, dark and one is lonely and thinks danger comes from outside. This destructive step from the two leads toward creative separation and with the relief when poison comes out healing is possible.

40.Four of Swords

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To withdraw from difficulties, illness, isolation, stagnation, meditation, contemplation. Rest, to insert break. A quiet time of withdrawal and contemplation, a period of introversion and reflection, of emotional recuperation after the outbreak of conflict in the Three. It means accept solitude and rest from sorrow so peace of mind and liberation can happen. Here we have conventional thinking, being confident that one's traditional approach will resolve all demanding situations. Dogma, law, truce and compromise for social harmony.Negative: Isolation, prison, loneliness, rigidity and conformity of mind, inflexible views and ideas, bigotry.

41.Five of Swords

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Defeat, loss, disgrace, humiliation.

42.Six of Swords

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To go through a difficult situation, modification, trip or removal. A temporary solution. Rescue from the plight.

43.Seven of Swords

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Fail in a project, fraud, cunning and malice. Win through cunning, to cheat or to be deceived.

44.Eight of Swords

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Feel tired, to be humiliated and suppressed, have strong inhibitions. Difficulties, imposed isolation.

45.Nine of Swords

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Experience a difficult grief. Having doubt, fear, shame, worries and distrust.

46.Ten of Swords

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To feel completely knocked down, sudden alternation, a tremendous solution. Abandonment. War, corruption, collapse and sorrow bring mental desperation.Suddenly we see the broken heart, the fear of madness and destructiveness, energy of accumulated anger - all our negative thinking.

47.Page of Swords

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Look distantly from the high level onto problems. Opportunity to clarify something but also to cause conflicts and quarrel. A watchful, astute human being who has good negotiation qualities and lets himself with pleasure into complicated matters.

48.Knight of Swords

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Throw oneself into the problems courageously and with greatest eagerness, in good belief that they can be solved fast. Cold atmosphere, aggressiveness, combativeness. A courageous, strong, but sometimes stubborn man, who can fight perseveringly and well.

49.Queen of Swords

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Tackle problems courageously and sincerely, to be able to free oneself with the clear head from confusion, doubt and fear. To be able to act functionally, objectively and reserved. An intelligent, versatile, watchful woman who has the talent to hold the opposing group in the balance.

50.King of Swords

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To be witty, critical, clever, be able to liberate oneself from confusion, doubt and fear with the clear head. Decide justly, act substantially, objective and reserved. A sensible, ingenious, intellectually opened and versatile man, an advocate of right, arrangement and modernity.

51.Ace of Pentacles

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To feel secure, to be able to enjoy in everyday life, chance to find inner or external fortune. Prosperity, physical comfort. The strength of the earth element.the begining situation.Your present situation is characterized through frankness, liveliness.

52.Two of Pentacles

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To take everything easy-minded, to deal with the life playfully, to behave flexibly, light-heartedly and frivolously. Imminent modifications and news, particularly with reference to business and money. Getting excited with the possibility of a material project. Someone is making an offer that could later bear fruit. Exchange, developing, creating together, building up, use of natural, present, available power to invest effort in new projects. Willingness to try several things at once and to take risks to utilize talents. It needs flexibility and change is the support of stability. It means willingness to put money and energy to work and shifting resources, play with money. Transformation, friction, progress, renewal.

53.Three of Pentacles

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Consider wishes and ideas of other people and adapt oneself to the needs of the environment. A very able man, master in his field. Self-confirmation, recognition, attain praise through job. Establishment of the idea of the universe. Work of a physical or constructional nature brings perfection. But it needs hard work and quarrel to strengthen a position and make it permanent and risk before one can count oneself materially secure. Also seeing one's own limits and consequences, see your capacity, use your business skills, work on your character to handle the future.

54.Four of Pentacles

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To be dependent on physical comfort and safety, not to be able to let something go, an exaggerated security interest. But also: physical stability, good business… Achievement of financial and material security. Being established and successful in one's career or ambitions. The manifestation of self-worth through material values. This character has integrity and confidence, claims his own territory, house and property and maintains his comfort and position in life.

55.Five of Pentacles

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To have to go through times of need, crisis and privation. Unemployment, loss of safety. Way out of a difficult situation within reach.

56.Six of Pentacles

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Relationship which forms a clear hierarchy, generosity, readiness to help and friendliness. Solvency, good financial basis.

57.Seven of Pentacles

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Pick fruits of his job, wait patiently for growth and success. Overcoming of inactivity as assumption for a success.

58.Eight of Pentacles

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To be able to work on the realization of the plans well and in a concentrated way. The beginning of a wise activity. Useful modification in physical matters. The work is rewarded.

59.Nine of Pentacles

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Being able to make correct decisions and to make a necessary steps. Experiencing success, profit, pleasant surprise, sudden improvement.

60.Ten of Pentacles

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Not being able to see hidden possibilities, not being able to rise above routine; wealth and contentment. Physical safety through achievements of the ancestors, inheritance, family luck. Wealth - inside and outside and the ability to pass it on. This may be a material inheritance of wealth or property or it may be an artistic achievement. On the other side the world is upside-down with inhibition and one has to take all consequences of life, there is futility of material gain, unless put to good use. See yourself, show yourself and use what's there, give it, spent it for the potential to sense the reality. Family, inheritance, economic welfare and having fun together means a period of ongoing contentment and security, a sense of something permanent having been established.

61.Page of Pentacles

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Working on the realization of own tasks with fascination and interest, to become a good offer or proposition. An economical, conscientious and responsible human being.

62.Knight of Pentacles

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Show the practical sense and work hardly, devote oneself to the practical concerns; permanence and persistence. A practical, tradition-bound man who can uncompromisingly support law and truth.

63.Queen of Pentacles

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Be self-confident, have indigenous, good-natured and pragmatic attitude. A sensitive, emotional woman, who loves comfort and luster, and supports and encourages her people.

64.King of Pentacles

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To be satisfied, finish tasks without a lot of trouble, enjoy success, have an indigenous and pragmatic attitude. A man methodical, trustworthy, very skilful at material matters.

65.Ace of Cups

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Experience a happy time, to receive joy and love, joy and love. A chance to experience happiness and harmony. The strength of the element water.

66.Two of Cups

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To begin an important relationship, a friendship or love. Bringing something successfully to good settlement, experience harmony and understanding. Close a contract. Good cooperation. Love, happy relationship, harmony and melting, receptivity, sweetness of youth, vitality and feeling, flirtation, a holiday romance with no commitments - all this represents a desire for openness and honesty. It is an initial meeting between active and passive, man and woman, projecting itself on to something or someone outside.

67.Three of Cups

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To be pleased, celebrate joy and success. A wish went into fulfillment.It is a completion of the initial attraction, feelings are expressed, accepted and shared and then it is a spiritual union with another. The healing power of true unselfish love. New dimension of life is unfolding, the feeling of joy and promise, birth of a child.

68.Four of Cups

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Be dissatisfied, sad, annoyed and uncourageous. Fulfillment that reached its climax and changes into stagnation. Confidence to deal with everyday emotional situations and the conventional ability to sense sympathetically other people's feelings. But one can call it also control of feelings, a blissful state of ignorance and so abandonment brings new desires.

69.Five of Cups

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Have to get over a bitter loss. Grief, problems and worries.

70.Six of Cups

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To make animated relationship to the past, nostalgia and beautiful memories. Harmony, good health. A good attendant, teacher, consultant.

71.Seven of Cups

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Imaginations, day dreams, zeal and illusions. Confrontation with several options.

72.Eight of Cups

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To leave a secure and stable situation and to go on, to carry out a hard departure into the uncertainty. Break off the past ties, in order to reach something new.

73.Nine of Cups

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Enjoy joy of the life, to be cheerful and careless. Physical stability. Pride, complacency, vanity.

74.Ten of Cups

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Joy, luck, harmony, love, a peaceful and secure environment. Loving another person opens the heart to love life itself, life has meaning and purpose and a larger, brighter world appears before one's vision - the connection with our own soul. Here comes ecstasy of the reunion of the lovers, conscious union of two loving but separate partners. It is an immortal status, not only personal and sensual dimension but a spiritual one as well.

75.Page of Cups

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Dedicating oneself to the fantasies and imagination, experience praise or recognition. A poetic, careful human being who gives advises frankly, studies with pleasure or meditates.

76.Knight of Cups

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Pleasant and harmonious atmosphere. Difficulties to implement the ideas of the imagination through the action. Friendliness and harmony. A friendly man, capable of enthusiasm, who has high ideals and is accessible for new ideas.

77.Queen of Cups

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Being able to join fantasy and action in the best way and to direct fantasy and action towards concrete destinations of the reality. Have an intuitive, sensitive, emotional attitude. A romantic, loving, emotional woman who can fascinate.

78.King of Cups

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Discipline dreams and imagination. Draw attention to the outside world and take over the responsibility. Have an intuitive, sensitive, emotional attitude. An imaginative, artistic or scientifically talented man who has good negotiating abilities and is very much suitable as a manager.